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Thursday, April 26, 2007

दीदार की तम्मना है .....

अब तो उतनी भी नही मिलती है मैखने में,
जितना वो छोड़ दिया करते थे पैमाने में !!



अब ख़ुद ही समझ लो मेरी नज़रो का फ़सना !
लब्ज़ो से तो इज़हार मुक्कमल नही होता !!


दीदार की तम्मना है तो नज़ारे जमाए रख,
आँचल हो या नक़ाब सरकता ज़रूर है !
इस ख़ुशबू को महकने से ना रोक,
इस उमर में ये गुलाब मेहकता ज़रूर है !!

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