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Thursday, November 29, 2007

मन मछेरा हो गया

तुम हृदय के द्वार पर आए
उजेरा हो गया

आँसुओं ने एक लिख डाली कथा
थी छिपी जिसमें घरौंदे की व्यथा
किंतु तिनके बीन तुम लाए
बसेरा हो गया

इस जगत ने झूठ ही हमको दिया
हमने तेरी आँख से सच को पिया
अब निशा का तम भले छाए
सवेरा हो गया

तुम हृदय सागर तलक जाओ ज़रा
सीप के मोती उठा लाओ ज़रा
मन हमारा मीन बिन पाए
मछेरा हो गया

चल रहा हर पाँव तपती रेत पर
क्यों न सुस्ता लें ज़रा-सा खेत पर
रास्ते को क्या कहा जाए
लुटेरा हो गया

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