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Wednesday, September 17, 2008

तुम मेरे आस पास...

तुम मेरे आस पास, नही हो,

तुम कही नही हो.

फिर भी तुम्हारी खुश्बू,

हवओ मे घुली जा रही है.

हवा चलती है जैसे के

तुम कुछ कहे जा रही हो

तुम सामने नही हो,

मगर आँखे तुम्हे ही देखे जा रही है.

ये कसा जुनून है,

ये कसी जादूगरी है

के मैं जानता हूं,

कि ना तुम मेरी हो,

ना मै तुम्हारा

फिर भी आती जाती साँसे

तुम्हारे नाम कि लगती है.

तुम्हे पता हो शायद,

के मै तुम पर इख्तियारि समझता हूं.

तुम्हारी मुझे खबर नही मगर,

तुम अपनी दुनिया मे शायद,

गुम या भूल गयी होगी मुझे,

मेरी तनहाइया भी

तुम्हारे वजूद का एहसास दिला जाती है.

तुम कहाँ हो,

किस जहां मे हो,

जहां भी हो,

कहती है धड़कन तुम मेरी हो,

मेरे साथ हो, मेरे पास हो.

जबकि मैं जानता हूं, तुम नही हो, तुम कही नही हो.

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