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Monday, July 27, 2009

सांस को सांस से मिलने दे ज़रा,
दर्द का एक कतरा दिल पे गिरने दे ज़रा,
तिश्नगी है धडकनों को दिल को छोड़ने की,
आज ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से बिचादने दे ज़रा,
बड़ा मासूम सा गुनाह हुआ है मोहब्बत में ,
इश्क की इस चाह्हत को थोडा और तड़पने दे ज़रा,
इस जिस्म से बस राख बन जाना चाहती हूँ
इतनी सी चाह्हत पूरी करने दे ज़रा,
करती है गीले ज़िन्दगी की घडियां,
आज मौत की बहूँ में बिखरने दे ज़रा,
बीते हुए कल से आने वाला कल बनी हूँ,
इस गुज़रे हुए वक़्त में कुछ पल जीने दे ज़रा.

तेरे चेहरे को ...

तेरे चेहरे को छूने की चाहत नहीं,
बंद मुट्ठी में खुले गम की कोई आहट नहीं ,
रात के ख्वाबों में शायद बिचादा था मुझसे,
सुबह की नींद किसी ख़ुशी की सजावट नहीं,
दर्द इतना अपना होकर मिलता है मुझसे,
मौत से भी अब होती मुझे घबराहट नहीं,
उसके प्यार में जलजलकर खरा सोना बनी हूँ,
वर्ना आग में जलने की मुझे आदत नहीं,
मोहब्बत जुनू बन गई है इबादात करते करते,
वो तो मेरे प्रेम की लगन से वाकिफ नहीं.

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