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Monday, July 30, 2007

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Sunday, July 29, 2007

प्यार कमज़ोर दिल से ...

प्यार कमज़ोर दिल से किया नही जा सकता,
ज़हर दुश्मन से लिया नही जा सकता,
दिल में बसी है उल्फ़त जिस प्यार की
उस के बिना जिया नही जा सकता.

साथ रहते रहते यूही वक़्त गुज़र जाएगा
दूर होने के बाद कौन किसे याद आएगा
जी लो ये पल जब हम साथ है
कल का क्या पता, वक़्त कहाँ ले जाएगा

Saturday, July 28, 2007

रामायण




मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।

होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।

जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।

कबीर की साखियाँ

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय.
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय..


कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ.
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..


प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय.
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय ..


पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय.
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय..


माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर.
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर ..


माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर.
कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर..


झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.
खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद..


वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर.
परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर..


साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय.
तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय..


सोना सज्जन साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार.
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धकै दरार..


मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ.
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ..


तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय.
कबहुँ उड़न आखन परै, पीर घनेरी होय..


बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि.
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि..

ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय.
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय..


लघता ते प्रभुता मिले, प्रभुत ते प्रभु दूरी.
चिट्टी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी..


मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं.
मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..


जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं.
ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं..

तुफानो को नींद..

तुफाने आती है तो क्या लहरे
क्या माझी,कोई नही टिकता
सब पल भर में खाँख मे मिल जाता
चारो तरफ श्मशान सा माहोल बन जाता
तुफानो को नींद नही आती।।

पछियों, गिध्दो का बादल पर छा जाना
विरान सा बंजर जिन्दगी का होना
कोई तो तुफान से पूछे तुझे नींद क्यो नहीं आती
थम क्यो नहीं जाती इसकी शरारतें,
तुफानो को नींद नहीं आती ।।

क्यो बेचैंन होती हैं ,लोगों का अमन चैंन छीनने को
क्यो बरबाद करती हैं तू , तुझमें थोडी भी दया नही
क्यो पूरे हरियाली को पल भर में रेगिस्तान कर देती हैं तू
दया कर हम पर ओैर सो जा ,अब मत सता तू
तुफानो को नींद नहीं आती ।।

अहा! बसंत तुम...

अहा! बसंत तुम आए।
तरु-पादप पतवार सहित
वन-उपवन नवरंग पाए।
अहा! बसंत तुम आए।

उत्तर फागुन वन पतझड़ था
अन्तर्मन एक व्यथा लहर था
हलाँकि प्रियतम दुर नही थे
शायद चैती हवा असर था
सहसा सब कुछ बदल गया
मन मौन तोड़ मुसकाए
अहा! बसंत तुम आए।

सज गई सुहानी हरियाली
कोमल किसलय फुनगी लाली
फूल पंखुरियाँ सतरंगी उड़े
कभी इस डाली कभी उस डाली
ये रंग सभी सुगंध भरे
मधुकंठिनी छुप-छुप गाए
अहा! बसंत तुम आए।

कुछ ऐसी अल्हड़ हवा चली
लेती अंगड़ाई कली-कली
लघु पहन बसंती परिधान
युवती इत्तराई बन तितली
इन कंचन कामिनी फूल पे
प्रेमी मन भंवरा मंडराए
अहा! बसंत तुम आए।

रस रंग भाव मधु उमंग हिये
जग मदमत्त जैसे भंग पीये
ऐ,रितुराज कहाँ से तुमने
इतने गंध-सुगंध लिए
कुछ ओर भी है अदृश्य जरुर
रहि-रहि मन को उकसाए
अहा! बसंत तुम आए।

मंजिल आसान नहीं...

मंजिल आसान नहीं हैं राही
बस चलते रहो , बस चलते रहो
तय कर लो राही तुम्हें जाना किधर हैं ।।

तुम अपना कर्म करते रहो - करते रहो
राही तुम चलते रहो चाहे तुफान आये,
या मुसीबत की घडी. या तकदीर का खेला ।।

धूप हो या छाव, हो चाहे बाधा
राही तुम अपनी मंजिल से डगमगाना नहीं
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।

कभी इस डगर तो कभी उस डगर
कभी इस शहर तो कभी उस नगर
धावक बनकर बस मंजिल की तलाश में
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।

रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ...

जिन्द‌गी मॆ है कित‌नॆ प‌ल‌
जीव‌न‌ र‌हॆ या न‌ र‌हॆ क‌ल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

ब‌न्द क‌र दॆख‌ना भ‌विष्य‌फ‌ल
छॊड‌ चिन्ता क‌ल‌ की
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

ह‌र‌ प‌ल‌ है मूल्य‌वान
है तू भाग्य‌वान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

दिल‌ कि ध‌क‌ ध‌क
दॆती है तुम्हॆ यॆ ह‌क
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

ह‌र‌ घ‌डी मॆ है म‌स्ती
दॆखॊ है यॆ कित‌नी स‌स्ती
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

क‌म क‌र अप‌नी व्य‌स्त‌ता
जीनॆ का निकालॊ स‌ही र‌स्ता
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

प‌ल‌ प‌ल‌ मॆ जीना सीखॊ
चॆह‌रॆ प‌र लाक‌र‌ मुस्कान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

काम‌ न‌ही हॊगा क‌भी ख‌त्म
उस‌मॆ सॆ ही निकालॊ व‌क्त
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

दुश्म‌नी मॆ न‌ क‌रॊ स‌म‌य ब‌र‌बाद
दॊस्तॊ सॆ क‌र‌ लॊ अप‌नी दुनिया आबाद
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

क‌र‌ ग‌रीबॊ का भ‌ला
पाऒ मन‌ का स‌कून
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

ख्वाबॊ सॆ बाह‌र‌ निक‌ल
रंग बिरंगी दुनिया दॆखॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

क‌म‌ क‌र‌ अप‌नी चाहत‌
ब‌न‌ क‌र दूस‌रॊ का स‌हारा
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

बांट कर दुख‌ द‌र्द स‌ब‌का
भुला क‌र‌ अप‌ना प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

जीव‌न कॊ ना तौल पैसॊ सॆ
यॆ तॊ है अन‌मॊल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

सुख‌ और दुख कॊ प‌ह‌चान‌
है यॆ जीव‌न‌ का र‌स
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

ईश्व‌र‌ नॆ ब‌नाया स‌ब‌कॊ ऎक‌ है
तू भी ब‌न‌क‌र‌ नॆक
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

अप‌नॆ साथ‌ दूस‌रॊ कॆ आँसू पॊछ
पीक‌र ग‌म प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

खुश र‌ह‌क‌र बांटॊ खुशियां
मुस्कुरातॆ हुऎ बिखॆरॊ फूलॊं की क‌लियां
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

बांध लॆ तू यॆ गाँठ
स‌म‌झ लॆ मॆरी बात
प‌ढ क‌र‌ मॆरी क‌विता बार‌ बार‌
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ

हमारी क़िस्मत...

ये न थी हमारी क़िस्मत के निसाले यार होता .
अगर और जीते रहते यही इन्तजार होता ..

तेरे वादे पे जिये हम तो ये जान झूठ जाना.

के ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता ..

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीय कश को.

ये खालिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता ..

ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह.

कोई चारा-साज होता कोई ग़मगुसार होता ..

रंगे-संग से टपकता वो लहू के फिर न थमता.

जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता ..

कहूँ किससे मैं के क्या है शबे-ग़म बुरी बला है.

मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता ..

हुए हम जो मर के रुसवा हुए क्यूँ न ग़रक़े दरिया.

न कभी ज़नाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता ..

ये मसाईले-तसव्वुफ़ ये तेरा बयान ‘ग़ालिब’.

तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख्वार होता ..

-मिर्जा गालिब

अच्छा लगता है...

एक दर्द जो अच्छा लगता है।
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है।

कभी सामना उससे होती है
ये दिल रह जाता है धक!से
ये प्यार है,भय है या कोई
ये अर्ज़ है अच्छा लगता है।।

भीड़ भरी इस दुनिया में
इसने उसको हीं क्यों देखा
किसी पिछले जनम का नाता है
या कर्ज़ है अच्छा लगता है।।

ये खुद को प्रेमी कहता है
मुझको इतिहास पढाता है
किस-किस मजनूँ का नाम कहाँ
पे दर्ज़ है अच्छा लगता है।।

कभी उसने मुड़कर नही देखा
मुझको क्या पीड़ा होती है
ये कुक्कुड़ का दुम कहता है
क्या हर्ज़ है अच्छा लगता है।।

वो भले हीं इसको ना देखे
हर अदा का रस ये लेता है
कहता है मंडराना,जलना
तो फ़र्ज़ है अच्छा लगता है।।

नन्दन कितना समझाया भी
कुछ मेरी तड़प भी समझाकर
अपने हीं मन की सुनता है
खुदगर्ज़ है अच्छा लगता है।।

एक दर्द जो अच्छा लगता है
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है

तू कोई खुदा नहीं...

तू कोई खुदा नहीं जो तकदीर लिखे इंसान की,

फिर भी वही करता है तू सूरत लिए शैतान की।

डरता नहीं इस बात से जब चलती आँधी वक्त की,

हर शख्स मिट जाता है तब सीरत लिए हैवान की।।

झाँसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

( झाँसी की रानी- सुभद्रा कुमारी चौहान )

मानुस हौं तो वही रसखान ...

मानुस हौं तो वही रसखान ...

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन,
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन.

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन,
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन.

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं,
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं.

रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं,
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं.

सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै,
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं.

नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं,
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं.

धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी,
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी.

वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी,
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी.

कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै,
माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै.

टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै,
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै.

मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री,
ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री.

अब तौ रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री,
और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग रंगीले सो रंग रह्यो री.

( रसखान )

मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे...

मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास में।
नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।
खीजी होय तुरत मिल जा इस पल की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में ।

(कबीर)

प्यार करके जो...

प्यार करके जो वफ़ा करते हैं
ऐसे कम लोग मिला करते हैं

क्यूं वो ख़ुद हम से नही कह देते
और लोगों से गिला करते हैं

हम से मिलने को वो आजाए कभी
हर घड़ी ये ही दुआ करते हैं

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