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Saturday, July 28, 2007

अच्छा लगता है...

एक दर्द जो अच्छा लगता है।
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है।

कभी सामना उससे होती है
ये दिल रह जाता है धक!से
ये प्यार है,भय है या कोई
ये अर्ज़ है अच्छा लगता है।।

भीड़ भरी इस दुनिया में
इसने उसको हीं क्यों देखा
किसी पिछले जनम का नाता है
या कर्ज़ है अच्छा लगता है।।

ये खुद को प्रेमी कहता है
मुझको इतिहास पढाता है
किस-किस मजनूँ का नाम कहाँ
पे दर्ज़ है अच्छा लगता है।।

कभी उसने मुड़कर नही देखा
मुझको क्या पीड़ा होती है
ये कुक्कुड़ का दुम कहता है
क्या हर्ज़ है अच्छा लगता है।।

वो भले हीं इसको ना देखे
हर अदा का रस ये लेता है
कहता है मंडराना,जलना
तो फ़र्ज़ है अच्छा लगता है।।

नन्दन कितना समझाया भी
कुछ मेरी तड़प भी समझाकर
अपने हीं मन की सुनता है
खुदगर्ज़ है अच्छा लगता है।।

एक दर्द जो अच्छा लगता है
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है

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