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Saturday, July 28, 2007

रामायण




मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।

होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।

जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।

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