मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।
होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।
जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।
होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।
जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।
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