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Sunday, May 27, 2007

हुई शाम उन का ख़याल आ गया

हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया ...

हमें तो यही था गुरूर गम-ए-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...

Thursday, May 24, 2007

तेरी आँखें अब होगी ना कभी नम

तेरी आँखें अब होगी ना कभी नम

तू जो देख ले तो भुला दे में सारे ग़म

तू जो चाहे जो बदलेगा मौसम

यह जो पल हैं इन्हे ख़ुशियो से भर लो तुम

वो बितें दिन उन्हे याद फिर से कर लो तुम

तू जो चाहे जो बदले गा मौसम

ए दिल तो रोना नही

यह ख्वाब अधूरे नही

यह अरमान सारे तेरे

होंगे पूरे कभी

इक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालाला

इक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालाला

रहे ना कमी कोई...

रहे ना कमी कोई, हर वार कर डालो...
इन हसीनो के उपर हर दाव खेल डालो,

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लिखा जाए एक फासना हमारे दोस्ताने का...
गुनगुनाओ एक मीठा नगमा इस दिल दीवाने का,

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करो कुछ ऐसा जिसमे मिलावाट हो बैमानी की...
और बुढ़ापे मैं कहो ये कहानी है हमारी जवानी की

दीवाना उसने कर दिया ...

दीवाना उसने कर दिया एक बार देख कर
हम कर ना सके कुछ भी लगातार देख कर

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ईद की ख़ुशियाँ आपको मुबारिक़ हों लेकिन
आपने चाँद नहीं आईना देखा होगा

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शायर तो हम है नहीं,
.....मगर शायरी यूही कर लेते है
जीना तो था नहीं,
.....मगर यूही ज़िंदगी को जी लेते हैं !!


Monday, May 14, 2007

प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी

प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

दिहल केवरिया पवनवा खोलावे बरबस बेदर्दी के याद ले आवे,
रोय भरे सोरहो सिंगार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

छिटके चंदनिया अऽगीनिया लगावे सुतलस नेहिया इऽ बैरिन जगावे,
भावे ना अङ्गना दुआर हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

पिहके पपिहरा पनघट किनारे अपनी मोरनिया का मोरवा दुलारे,
सम्हरे न गगरी हमार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

सगरो फुलवरिया के फुलवा फुलाईल बन मतवारे भवरवा लोभाऽईल,
सहलो ना जाला बहार हे सजनी डासर सेजरिया जहर भऽईल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

सरसो से खेतवा पियराइल बिरहन कोयलिया के बिरहा उमड़ाइल,
नीर झरे साँझ भीनसार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

डोले बसन्ती बयार

डोले बसन्ती बयार मगन मन होला हमार।

गेहुँआ मण्टरिया से लहरल सिवनवा, होखे निहाल भइया सगर किसनवा
धरती के बाढ़ल श्रृंगार मगन मन होला हमार।।

बिहँसेला फुलवा महकेला क्यारी, ताक झाँक भँवरा लगावे फुलवारी
मौसम में आइल बहार मगन मन होला हमार।।

आईल कोयलिया अमवाँ के डरिया, पीयर चुनरिया पहिरे सवरियाँ
सोहेला पनघट किनार मगन मन होला हमार।।

।।फगुनवा रास ना आवे.............।।

पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।

ननदी सतावे देवरा सतावे,
रही रही के जुल्मी के याद सतावे।
सासुजी देहली आशीष फगुनवा रास ना आवे।।

सखिया ना भावे नैहर ना भावे,
गोतीया के बोली जइसे आरी चलावे।
नींदियो ना आवे विशेष फगुनवा रास ना आवे।।

बैरी जियरवा कइसो ना माने,
रहि रहि नैना से लोरऽवा चुआवे
काहे नेहिया लगवनी प्राणेश फगुनवा रास ना आवे।।

पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।

बबुआ जमाना बडा. खराब बा

बच के रहिहऽ बबुआ जमाना बडा. खराब बा
रहि-रहि के गोडवा रखिहऽ जमाना बडा. खराब बा
केहू पे भरोसा कईसे करबऽ जमाना बडा.खराब बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।

दिल्ली, मुंबई, दुबई सगरो ठगन क जमाना बा
पईसा, रुपिया तऽ खाली ऎगो बहाना बा
खून-पसीना चूसे क तऽ ऍगरिमन्ट बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।

नऊकरी- शिक्षा के नाव पे शोषण क बोलबाला बा
डोनेशन अऊर अंडरटेबल ईनकम क बोली बा
का करबऽ बबुआ जमाना बडा. खराब बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।।
कमलेश कुमार चौधरी

।। जानवरन के मीटिंग ।।

जानवरन के मीटिंग में भइया बस इहे मुद्दा उभर के आईल बा,
घर लुटईला के बाद हमनी के करम भी इंसानन में बटाईल बा।
सबकर दुखड़ा सुन के राजा शेर के आँख में पानी भर आईल बा,
कइल जाई जाँच होखी हक खातिर महासंग्राम के बिगुल बजाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।

सबका सहमति से एगो संविधान पर अंतिम मुहर लगाईल बा,
सबसे पहिला हमार दुखड़ा के राग ढ़ेचुँ ढ़ेचुँ में गवाईल बा।
बाल मजदूरी अऊर श्रमिक उत्पीड़न में हमार हक दबाईल बा,
ई सुनते ही घोड़ा खच्चर ऊँट के राग भी एहि में समाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।

लोमड़ी मौसी के हाल तऽ अऊरो बदतर बा के ओरहना आईल बा,
दुसरा के माल पर आपन पेट भरे कऽ हक नेतवन में बटाईल बा।
नेताजी के चर्चा सुनते ही गिरगिटिया लोगन के रंग भी बदलाईल बा,
उनकर रंग बदले कऽ एस्क्लुसिव अधिकार भी नेता लोग चुराईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।

भाई से भाई लड़त देख कुकुरन के जात भी शरम से पनियाईल बा,
पतनशील समाज में इंसान के दरिंन्दगी से जानवर भी शरमाईल बा।
जहर उगीले के सर्प राज के महारथ पर भी पूरा पानी फेराईल बा,
नारी के कमसिन जीवन में नारी के जरिये ही जहर घोलाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।

इहे हाल रही तऽ हमार का होखी के नारा से पूरा हाल थर्राईल बा,
सबसे बुरा हाल के रोना त़ऽ भईया खुद राजा शेर से ही रोआईल बा।
बड़ बड़ हथियार से लैस चूहा जइसन आदमी के रक्षक शेर कहाईल बा,
राजा शेर के दुखड़ा सुन सब जानवरन के आँख में पानी भर आईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।

आपन इंतजाम .......

आज हम फिर से मुस्‍करा के बात कइनी ह ....
तहरा साथे वितावल हम घडी याद कइनी ह ...
चेहरा के काल्‍ह मुस्‍कराये खातिर औरी...
मन के पूरान दिन याद रहे के इंतजाम कइनी ह...

आज फेर से पूरान बतियन में हेरा गईनी ह ..
आज फेर से पूरान याद में डूब गईनी ह .......
हमरा मालूम बा कि काल्‍हो भी इ बतिया
हमार सब संगतिया, हमरा जरूर याद आई

आज फेरू हम मन्दिर गईनी ह ........
पूजा कईनी ह, औरी परसादी भी चढौनी ह......
आज के येह घनघोर कलयुग में भी ......
भगवान के कृपा हमरा पर बनल रही

आजकल गर्मी के आनन्‍द उठावत बानी
अमवा के बगइचा में पसीना सुखावत बानी
विधना के लेखा ह कि समय बदलबे करी ....
बरखा के सीजन भी समय पर अइबे करी ......

हम हमेशा से मन लगा के काम करीले ......
तय समय से पहिले पूरा भी करीले .......
हमार इंतजाम पूरा बा काल्‍ही खातिर भी
चाहे देही में ताकत रही भा ना रही .............

आज फिर से हम सूते जातानी .........
आज कौनो निमन सपना देखब ...
अगली पीढी के सपना सौपेके बा .......
काहे से कि...काल्‍ह ओके पूरा करेके बा ......



दू घूँटो पनिओ नाहि मिलल

दू घूँटो पनिओ के खातिर नटई सूख गईल
केहू दिलदार नईखे मिलल,जे कुअवा क डगर देखावे।
कहे के त? सब आपन बाड. ई बेदरदी दुनिया से
का उम्मीद कईल जाईल।
दू घूँटो.................

खटिया पड. पडल बानी, मेहरारू अऊर लईका काहे के पूछे
पनिओ लागल जईसे समुंदर क मथाई से निकलल अमरित हो गईल।
दू घूँटो....................

आज के जुग के पनिओ मिलल मुक्कदर हो गईल
बिसलेरी क पनिओ कीनब, गरीबन के सोना हो गईल।
दू घूँटो...................................


कमलेश कुमार चौधरी

Wednesday, May 09, 2007

आराम करो

एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा है माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ -- है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।

मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ -- सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।

अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।

मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

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