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Sunday, May 27, 2007

हुई शाम उन का ख़याल आ गया

हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया ...

हमें तो यही था गुरूर गम-ए-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...

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