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Saturday, July 28, 2007

मंजिल आसान नहीं...

मंजिल आसान नहीं हैं राही
बस चलते रहो , बस चलते रहो
तय कर लो राही तुम्हें जाना किधर हैं ।।

तुम अपना कर्म करते रहो - करते रहो
राही तुम चलते रहो चाहे तुफान आये,
या मुसीबत की घडी. या तकदीर का खेला ।।

धूप हो या छाव, हो चाहे बाधा
राही तुम अपनी मंजिल से डगमगाना नहीं
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।

कभी इस डगर तो कभी उस डगर
कभी इस शहर तो कभी उस नगर
धावक बनकर बस मंजिल की तलाश में
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।

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