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Sunday, December 30, 2007

ज़िंदगी है

मर्ज़ लाइलाज़ है तो चारा गर करेगा क्या
हम भटकना चाहेंगे तो राहबर करेगा क्या
ज़िंदगी है साँस भर उम्र भर की मौत है
साँस भर न जी सका उम्र भर करेगा क्या
जिसको ढूंढता हुआ दर-ब-दर फिरा है तू
वो बना है अजनबी, ढूंढकर करेगा क्या
आजतक झुका नहीं जो किसीके सामने,
सजदा तेरा ना करे, तो वो सर करेगा क्या
बुत बना रहे कोई, और कोई रहे ख़फा,
ये सफ़र का हाल है, हमसफ़र करेगा क्या
मौत जब क़रीब हो, ज़िंदगी र क़ीब हो,
और द वा बने ज़हर, तो ज़हर करेगा क्या
ख़ुद खुदा से पूछ ले 'रूह' ये तेरा जुनून
उस खुदा के दिल पे भी कुछ असर करेगा क्या

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