मैं लेटी थी वह लेटा था, अंग -अंग को उसने चूसा था,
होठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग -अंग को झकझोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन _ मन में दौड़ गई
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया
दोनों बोंडियों पर बारी-बारी, रगडा तो आग लगाय दिया
कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तन से जकड लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा
आगे जाता पीछे आता, मसंलता मेरी रौंद दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी
वह उत्तेजित और बिभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खीच लिया
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिव्हा से सरस किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुंह में जाय समाता था
मैंने होठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं
मै बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मुंह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनंद रस से तर थे सखी
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मै करूँ बखान सखी
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन थे आनंद के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
होठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग -अंग को झकझोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन _ मन में दौड़ गई
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया
दोनों बोंडियों पर बारी-बारी, रगडा तो आग लगाय दिया
कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तन से जकड लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा
आगे जाता पीछे आता, मसंलता मेरी रौंद दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी
वह उत्तेजित और बिभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खीच लिया
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिव्हा से सरस किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुंह में जाय समाता था
मैंने होठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं
मै बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
मुंह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनंद रस से तर थे सखी
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मै करूँ बखान सखी
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन थे आनंद के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
No comments:
Post a Comment