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Friday, June 01, 2007

यह रात इतनी तन्हा ....

यह रात इतनी तन्हा क्यूं होती है
सब को क़िस्मत साय शिकायत क्यूं होती है
यह क़िस्मत भी अजीब खेल खेलती है
जिसे अपनाना मुश्किल होता है
मोहब्बत उससी साय क्यूं होती है

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आँखें खुली हों तौ चेहरा तुम्हारा हो,
आँखें बूँद हों तौ सपना तुम्हारा हो,
मुझे मौत का डर ना होगा अगेर,
कफ़न की जगह दुपट्टा तुम्हारा हो

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जाने कौन दुआओं में याद रखता है
जब भी में डूबता हूँ समुंदर उछाल देता है


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