Sunday, December 30, 2007
ज़िंदगी है
हम भटकना चाहेंगे तो राहबर करेगा क्या
ज़िंदगी है साँस भर उम्र भर की मौत है
साँस भर न जी सका उम्र भर करेगा क्या
जिसको ढूंढता हुआ दर-ब-दर फिरा है तू
वो बना है अजनबी, ढूंढकर करेगा क्या
आजतक झुका नहीं जो किसीके सामने,
सजदा तेरा ना करे, तो वो सर करेगा क्या
बुत बना रहे कोई, और कोई रहे ख़फा,
ये सफ़र का हाल है, हमसफ़र करेगा क्या
मौत जब क़रीब हो, ज़िंदगी र क़ीब हो,
और द वा बने ज़हर, तो ज़हर करेगा क्या
ख़ुद खुदा से पूछ ले 'रूह' ये तेरा जुनून
उस खुदा के दिल पे भी कुछ असर करेगा क्या
बगिया
अधरो ने गाना तो चाहा, पर मन में ही गीत दबे हैं
खिलखिलके हसना तो चाहा, मुसका नोपर लगे हैं ताले
काँटों की राहों पर चलकर इन पैरों में पड़े हैं छा ले
आशाओं के वंदनवार से मन का द्वार सजाना चाहा
अपने लहू से सिँचके हमने ये गुलज़ार सजाना चाहा
हर आशा को चोट लगी है, और कलियों को ज़ख़्म मिले हैं
हाल न पूछो इस बगिया का, फूल के बदले शूल खिले हैं
चाहा कुछ था पाया कुछ है, किस्मत ने कुछ यूँ लूटा है,
पता नहीं कब हाथ से अपने ख़ुशियों का दामन छूटा है
कैसे खिलेगा फूल
मिल जाएगा वो ख़ाक में आया है ख़ाक से
रंगीन हैं फ़िजाएँ तुम्हारे विसाल से
गमगीन हैं फ़िजाएँ ख़याल-ए-फ़िराक से
मर्ज़ी तेरी है तू कभी आए के न आए
आवाज़ दी है हमने तो उठउठके ख़ाक से
हैरत से न यूँ देख हमें ग़ैर नज़र से
महफ़िल में तेरी आए हैं हम इत्तेफ़ाक से
नादान है ये जान भी दे देगा इश्क़ में
इस दिल को कभी यूँ न सताओ मज़ाक से
ए रूह उसकी बेरूख़ी ने जान से मारा
हम तो गए थे मिलने बड़े इश्तियाक से
भूले ही नहीं...
ख्वाबों के नशेमन को यूँ बर्बाद करें कैसे
अक्सर तो ख़यालों में मिला करते हैं तुमसे
मिलकर भी जुदा रहने की फ़रियाद करें कैसे
ये दर्द की सौगाते तो नेमत हैं खुदा की
इस दर्द से दिल को कोई आज़ाद करें कैसे
नाशाद जो हुआ है सनम तुमसे बिछड़के
कुछ ये तो कहो दिल का जहाँ शाद करें कैसे
ए 'रूह' ख़ुद ही डू बे हैं हम ग़म के भंवर में
उनकी उदास रातों को आबाद करें कैसे
Tuesday, December 11, 2007
इंतज़ार है उस शाम का
जब हो सिर्फ़ हो हम और तुम
हाथों में हाथ लिए
एक दूसरे में हो जाए गुम
मदमस्त करता हवा का झोका
और नीले झील का किनारा
चंदा संग चँदनी की किरने
बन जाए हम एक दूसरे का सहारा
होठों से कुछ ना कह कर भी
नज़रों ही नज़रों में सब कहना
दिल की राहों पर चलते हुए
मन ही मन मुस्कुराते रहना
सिर्फ़ कल्पना से ही बस
धड़कने हो जाती है तेज़
अब मुझे इंतज़ार है उस शाम का
सजेगी तेरे मेरे अरमानो की सेज .
Thursday, November 29, 2007
मन मछेरा हो गया
उजेरा हो गया
आँसुओं ने एक लिख डाली कथा
थी छिपी जिसमें घरौंदे की व्यथा
किंतु तिनके बीन तुम लाए
बसेरा हो गया
इस जगत ने झूठ ही हमको दिया
हमने तेरी आँख से सच को पिया
अब निशा का तम भले छाए
सवेरा हो गया
तुम हृदय सागर तलक जाओ ज़रा
सीप के मोती उठा लाओ ज़रा
मन हमारा मीन बिन पाए
मछेरा हो गया
चल रहा हर पाँव तपती रेत पर
क्यों न सुस्ता लें ज़रा-सा खेत पर
रास्ते को क्या कहा जाए
लुटेरा हो गया
Saturday, October 06, 2007
संता और बंता
कुछ देर बाद फिर एक आवाज हुई और पायलट ने बताया कि अब जहाज लगभग 6 घंटे देरी से पहुंचेगा।
संता ने अपने बगल में बैठे बंता के कान में फुसफुसाया - ''यार ! ये तो हद हो गई! अगर चौथा इंजन भी काम करना बंद कर दे तो क्या हम पूरा दिन आकाश में ही टंगे रहेंगे ?''
Wednesday, September 19, 2007
जब कभी तेरी याद आती है
चांदनी में नहा के आती है।
भीग जाते हैं आँख में सपने
शब में शबनम बहा के आती है।
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चलो कुछ देर साथ साथ रहा जाए,
चुप रहकर एकसाथ ये दर्द सहा जाए
कैसी कैसी उँच-नीच इस मन के साथ हुआ करती है,
एक दूजे के मन पर चलो मरहम आज लगाया जाए
Monday, August 27, 2007
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है,...
ना मा, बाप, बहन, ना यहा कोई भाई है.
हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है,
चंद दिनो के है ये रिश्ते, फिर वही रुसवायी है.
घर जाना Home Sickness कहलाता है,
पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है.
दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल,
Girl Friend से पल-पल की खबर पायी है,
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..
कभी खुली हवा मे घुमते थे,
अब AC की आदत लगायी है.
धुप हमसे सहन नही होती,
हर कोई देता यही दुहाई है.
मेहनत के काम हम करते नही,
इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है.
McDonalds, PizaaHut जाने लगे,
दाल-रोटी तो मुश्कील से खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..
Work Relation हमने बडाये,
पर दोस्तो की संख्या घटायी है.
Professional ने की है तरक्की,
Social ने मुंह की खायी
Monday, July 30, 2007
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Sunday, July 29, 2007
प्यार कमज़ोर दिल से ...
Saturday, July 28, 2007
रामायण
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।
होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।
जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।
कबीर की साखियाँ
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय..
कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ.
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..
प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय.
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय ..
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय.
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय..
माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर.
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर ..
माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर.
कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर..
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.
खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद..
वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर.
परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर..
साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय.
तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय..
सोना सज्जन साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार.
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धकै दरार..
मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ.
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ..
तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय.
कबहुँ उड़न आखन परै, पीर घनेरी होय..
बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि.
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि..
ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय.
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय..
लघता ते प्रभुता मिले, प्रभुत ते प्रभु दूरी.
चिट्टी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी..
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं.
मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..
जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं.
ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं..
तुफानो को नींद..
क्या माझी,कोई नही टिकता
सब पल भर में खाँख मे मिल जाता
चारो तरफ श्मशान सा माहोल बन जाता
तुफानो को नींद नही आती।।
पछियों, गिध्दो का बादल पर छा जाना
विरान सा बंजर जिन्दगी का होना
कोई तो तुफान से पूछे तुझे नींद क्यो नहीं आती
थम क्यो नहीं जाती इसकी शरारतें,
तुफानो को नींद नहीं आती ।।
क्यो बेचैंन होती हैं ,लोगों का अमन चैंन छीनने को
क्यो बरबाद करती हैं तू , तुझमें थोडी भी दया नही
क्यो पूरे हरियाली को पल भर में रेगिस्तान कर देती हैं तू
दया कर हम पर ओैर सो जा ,अब मत सता तू
तुफानो को नींद नहीं आती ।।
अहा! बसंत तुम...
तरु-पादप पतवार सहित
वन-उपवन नवरंग पाए।
अहा! बसंत तुम आए।
उत्तर फागुन वन पतझड़ था
अन्तर्मन एक व्यथा लहर था
हलाँकि प्रियतम दुर नही थे
शायद चैती हवा असर था
सहसा सब कुछ बदल गया
मन मौन तोड़ मुसकाए
अहा! बसंत तुम आए।
सज गई सुहानी हरियाली
कोमल किसलय फुनगी लाली
फूल पंखुरियाँ सतरंगी उड़े
कभी इस डाली कभी उस डाली
ये रंग सभी सुगंध भरे
मधुकंठिनी छुप-छुप गाए
अहा! बसंत तुम आए।
कुछ ऐसी अल्हड़ हवा चली
लेती अंगड़ाई कली-कली
लघु पहन बसंती परिधान
युवती इत्तराई बन तितली
इन कंचन कामिनी फूल पे
प्रेमी मन भंवरा मंडराए
अहा! बसंत तुम आए।
रस रंग भाव मधु उमंग हिये
जग मदमत्त जैसे भंग पीये
ऐ,रितुराज कहाँ से तुमने
इतने गंध-सुगंध लिए
कुछ ओर भी है अदृश्य जरुर
रहि-रहि मन को उकसाए
अहा! बसंत तुम आए।
मंजिल आसान नहीं...
बस चलते रहो , बस चलते रहो
तय कर लो राही तुम्हें जाना किधर हैं ।।
तुम अपना कर्म करते रहो - करते रहो
राही तुम चलते रहो चाहे तुफान आये,
या मुसीबत की घडी. या तकदीर का खेला ।।
धूप हो या छाव, हो चाहे बाधा
राही तुम अपनी मंजिल से डगमगाना नहीं
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।
कभी इस डगर तो कभी उस डगर
कभी इस शहर तो कभी उस नगर
धावक बनकर बस मंजिल की तलाश में
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।
रॊज हमॆशा खुश रहॊ...
जीवन रहॆ या न रहॆ कल
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
बन्द कर दॆखना भविष्यफल
छॊड चिन्ता कल की
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
हर पल है मूल्यवान
है तू भाग्यवान
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
दिल कि धक धक
दॆती है तुम्हॆ यॆ हक
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
हर घडी मॆ है मस्ती
दॆखॊ है यॆ कितनी सस्ती
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
कम कर अपनी व्यस्तता
जीनॆ का निकालॊ सही रस्ता
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
पल पल मॆ जीना सीखॊ
चॆहरॆ पर लाकर मुस्कान
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
काम नही हॊगा कभी खत्म
उसमॆ सॆ ही निकालॊ वक्त
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
दुश्मनी मॆ न करॊ समय बरबाद
दॊस्तॊ सॆ कर लॊ अपनी दुनिया आबाद
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
कर गरीबॊ का भला
पाऒ मन का सकून
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
ख्वाबॊ सॆ बाहर निकल
रंग बिरंगी दुनिया दॆखॊ
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
कम कर अपनी चाहत
बन कर दूसरॊ का सहारा
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
बांट कर दुख दर्द सबका
भुला कर अपना पराया
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
जीवन कॊ ना तौल पैसॊ सॆ
यॆ तॊ है अनमॊल
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
सुख और दुख कॊ पहचान
है यॆ जीवन का रस
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
ईश्वर नॆ बनाया सबकॊ ऎक है
तू भी बनकर नॆक
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
अपनॆ साथ दूसरॊ कॆ आँसू पॊछ
पीकर गम पराया
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
खुश रहकर बांटॊ खुशियां
मुस्कुरातॆ हुऎ बिखॆरॊ फूलॊं की कलियां
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
बांध लॆ तू यॆ गाँठ
समझ लॆ मॆरी बात
पढ कर मॆरी कविता बार बार
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
हमारी क़िस्मत...
अगर और जीते रहते यही इन्तजार होता ..
तेरे वादे पे जिये हम तो ये जान झूठ जाना.
के ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता ..
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीय कश को.
ये खालिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता ..
ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह.
कोई चारा-साज होता कोई ग़मगुसार होता ..
रंगे-संग से टपकता वो लहू के फिर न थमता.
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता ..
कहूँ किससे मैं के क्या है शबे-ग़म बुरी बला है.
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता ..
हुए हम जो मर के रुसवा हुए क्यूँ न ग़रक़े दरिया.
न कभी ज़नाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता ..
ये मसाईले-तसव्वुफ़ ये तेरा बयान ‘ग़ालिब’.
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख्वार होता ..
-मिर्जा गालिब
अच्छा लगता है...
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है।
कभी सामना उससे होती है
ये दिल रह जाता है धक!से
ये प्यार है,भय है या कोई
ये अर्ज़ है अच्छा लगता है।।
भीड़ भरी इस दुनिया में
इसने उसको हीं क्यों देखा
किसी पिछले जनम का नाता है
या कर्ज़ है अच्छा लगता है।।
ये खुद को प्रेमी कहता है
मुझको इतिहास पढाता है
किस-किस मजनूँ का नाम कहाँ
पे दर्ज़ है अच्छा लगता है।।
कभी उसने मुड़कर नही देखा
मुझको क्या पीड़ा होती है
ये कुक्कुड़ का दुम कहता है
क्या हर्ज़ है अच्छा लगता है।।
वो भले हीं इसको ना देखे
हर अदा का रस ये लेता है
कहता है मंडराना,जलना
तो फ़र्ज़ है अच्छा लगता है।।
नन्दन कितना समझाया भी
कुछ मेरी तड़प भी समझाकर
अपने हीं मन की सुनता है
खुदगर्ज़ है अच्छा लगता है।।
एक दर्द जो अच्छा लगता है
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है
तू कोई खुदा नहीं...
तू कोई खुदा नहीं जो तकदीर लिखे इंसान की,
फिर भी वही करता है तू सूरत लिए शैतान की।
डरता नहीं इस बात से जब चलती आँधी वक्त की,
हर शख्स मिट जाता है तब सीरत लिए हैवान की।।
झाँसी की रानी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
( झाँसी की रानी- सुभद्रा कुमारी चौहान )
मानुस हौं तो वही रसखान ...
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन,
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन.
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन,
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन.
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं,
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं.
रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं,
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं.
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै,
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं.
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं,
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं.
धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी,
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी.
वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी,
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी.
कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै,
माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै.
टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै,
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै.
मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री,
ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री.
अब तौ रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री,
और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग रंगीले सो रंग रह्यो री.
( रसखान )
मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे...
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास में।
नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।
खीजी होय तुरत मिल जा इस पल की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में ।
(कबीर)
प्यार करके जो...
ऐसे कम लोग मिला करते हैं
क्यूं वो ख़ुद हम से नही कह देते
और लोगों से गिला करते हैं
हम से मिलने को वो आजाए कभी
हर घड़ी ये ही दुआ करते हैं
Friday, June 15, 2007
लम्हे ये सुनहरे कल साथ हो ना हो,...
कल मे आज जैसी बात हो ना हो,
यादों के हसीं लम्हे दिल मे रहेंगे,
तमाम उमर चाहे मुलाक़ात हो ना हो
*************************************
मुस्कुरा दो ज़रा खुदा के वास्ते,
समा-ए-महेफ़ील में रोशनी काम है
तुम हमारे नही तो क्या ग़म है
हम तुम्हारे तो है ये क्या काम है
कितना भी चाहो ना भूल पाओगे हमे ....
जितनी दूर जाओगे नज़दीक पाओगे हमे
मिटा सकते हो तो मिटा दो यादें मेरी
मगर क्या सांसो से जुदा कर पाओगे हमे?
*********************************
माना आज उन्हे हमारा कोई ख़याल नही,
जवाब देने को हम राज़ी हे पर कोई सवाल नही,
पूछो उनके दिल से क्या हम उनके यार नही,
क्या हमसे मिलने को वो बेकरार नही..!!
Tuesday, June 05, 2007
हम से दूर जाओगे कैसे...
दिल से हमे भुलाओगे कैसे,
हम तो वो ख़ुश्बू हैं जो आपकी
साँसों में बसते हैं
ख़ुद की सांसो को रोक पाओगे कैसे
***********************************
हर बार दिल से यह पैगाम आए
ज़ुबान खोलू तो तेरा ही नाम आए
तुम ही क्यों भाए दिल को क्या मालूम
जब नज़रों के सामने हसीन तमाम आए!
बोलती है दोस्ती चुप रहता है प्यार,...
हँसती है दोस्ती रुलाता है प्यार,
मिलती है दोस्ती जुदा करता है प्यार,
फिर भी क्यूं दोस्ती छोड़कर लोग करते है प्यार?
****************************************
लेके हम दूसरो की हँसी क्या करे,
जो अपनी नही वो ख़ुशी क्या करे,
तन्हा जीने से बेहतर है मर जाए हम
जब साथ तुम नही तो ज़िंदगी जी कर क्या करें...
सुर्ख़ आँखो से जब वो देखते ह...
हम घबराकर आँखे झुका लेते है
कौन मिलाए उन आँखो से आखे..
सुना है वोह आखो से अपना बना लेते है
****************************************
यह दिन तो काट जाता है यूँ ही,
यह रात कम्बख़्त जाती ही नही,
रोज़ तुमसे मिलने की तमन्ना होती है
पैर वो घड़ी कम्बख़्त आती ही नही,
हर दिन मरते हैं तुमसे मिले बिना,
और मौत कम्बख़्त आती ही नही......
शाम होते ही ये दिल उदास होता है...
टूटे ख्वाबों के सिवा कुछ ना पास होता है
तुम्हारी याद ऐसे वक़्त बहुत आती है
बंदर जब कोई आस-पास होता है
**************************************
मोहब्बातों मे ज़रा सी कसक ज़रूरी है
शिकायतों के गुलों की महक़ ज़रूरी है
कोई सवाल करूँ मैं तुमसे तो नाराज़ मत होना..
क्यों की सच्चे प्यार मे थोड़ा सा शक ज़रूरी है
**************************************
मुद्दत से दूर थे हम
आप मिले..
आप का मिलना अच्छा लगा...
सागर से गहरी लगी आपकी मोहब्बत...
तैरना तो आता था...
पैर डूबना अच्छा लगा...
Friday, June 01, 2007
कॉलेज में अजीब-अजीब खेल होता है...
पढ़ाई के बहने दो दिलों का मेल जोल होता है
इसीलिए तो भैया पप्पू हर साल फेल होता है
तुझसे प्यार क्या किया सब उम्मीदें टूट गई...
क्या बतौँ तुझसे, मुझसे तो मेरी मौत भी रूठ गई
अब तो आँखों मे बस आँसू हैं
दिल मे मरने की तमन्ना
हर पल दुआ है दिल से ज़िंदगी रूठे तो रूठे
मौत ना रूठे किसी से
*************************************
ऐसा प्यार किया तुझसे ख़ुद से नफ़रत हो गई
ऐसा दिल दिया तुझको ख़फा मुझसे कुदरत हो गई
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अब तुझे भूल भी जाऊं तो क्या है
तेरे इश्क़ ने बर्बाद तो कर ही दिया
ना मर सकता हूँ ओर ना जी सकता हूँ
प्यार तुझसे करके ज़हर ऐसा पिया
यह रात इतनी तन्हा ....
सब को क़िस्मत साय शिकायत क्यूं होती है
यह क़िस्मत भी अजीब खेल खेलती है
जिसे अपनाना मुश्किल होता है
मोहब्बत उससी साय क्यूं होती है
*****************************************
आँखें खुली हों तौ चेहरा तुम्हारा हो,
आँखें बूँद हों तौ सपना तुम्हारा हो,
मुझे मौत का डर ना होगा अगेर,
कफ़न की जगह दुपट्टा तुम्हारा हो
*****************************************
जाने कौन दुआओं में याद रखता है
जब भी में डूबता हूँ समुंदर उछाल देता है
कुछ उनकी अदाओ ने लूटा,...
कुछ उनके इनायत मार गयी
हम राज़ ए मोहब्बत कह ना पाए,
चुप रहने की आदत मार गयी
दोनो से ही है शिकायत,
इल्ज़ाम लगाए किस पर
कुछ दिल ने हमे बर्बाद किया ,
कुछ हमारी किस्मत मार गयी
हक़ीक़त पहचान लेना
बिछड़ जाने से पहले,
मेरी सुन लेना
अपनी सुनने से पहले,
बहुत रोई है ये आँखें
आपके दूर जाने से पहले
***************************************
कहाँ कोई ऐसा मिला जिसपर दिल लूटा देते, ...
हर एक ने दिया धोखा किस किस को भुला देते.
अपने दिल का दर्द दिल मे दबाए रखा,
अगर करते बयान तो महफ़िल को रुला देते.
***************************************************************
और हमे ये ज़िंदगी आपके साथ जीना है
और अगर इस ज़िंदगी में आप ही नहीं,
तो ये ज़िंदगी हमारे लिया क्या जीना है
मेरी ज़िंदगी का सहारा नही है...
इस जहाँ मे कोई हमारा नही है
छुआ उनका दामन तो वे हँसकार बोले,
दोस्त ये दामन तुम्हारा नही है
प्यार कमज़ोर दिल से किया नही जा सकता,...
ज़हर दुश्मंन से लिया नही जा सकता,
दिल में बसी है उल्फ़त जिस प्यार की
उस के बिना जिया नही जा सकता.
साथ रहते रहते यू हीं वक़्त गुज़र जाएगा
दूर होने के बाद कौन किसे याद आएगा
जी लो ये पल जब हम साथ है
कल का क्या पता, वक़्त कहाँ ले जाएगा
यू घुट घुट कई ज़िंदगी हम जिया नही करते,
यू किसी का पीछा हम किया नही करते,
ये तो इताफ़ाक की बात है की दिल तूमपे आ गया ,
वरना इतनी क़ीमती चीज़ हम किसी को दिया नही करते.
मेरे पाव मे ज़ंज़ीर नज़र आई
गिर पड़ा आँसू आँख से,और हर एक आँसू मे आपकी तस्वीर नज़र आई.
फिर किसी याद ने शब भर हाय जगाया मुझ को ...
क्या सज़ा दी हाय मोहबत ने खुदाया मुझ को
दिन को आराम हाय ना रात को है चैन कभी
जाने किस ख़ाक से क़ुदरत ने बनाया मुझ को
दुख तो एह हाय केह ज़माने मैं मिलाए घर सभी
जो मिला हाय वोह मिला बन केय पराया मुझ को
जब कोई भी ना रहा कंधा मेरे रोने को
घर की दीवारों ने सीने से लगाया मुझ को
यू तो उमीद-ए-वफ़ा तुम से नहीं हाय कोई
फिर चरागों की तरह किस नेय जलाया मुझ को
बेवफ़ा ज़िंदगी ने जब छोड़ दिया हाय तन्हा
मौत ने प्यार से पहलू मैं बिठाया मुझ को
वो दिया हूँ जो मोहब्बत ने जलाया था कभी
ग़म की आंधी ने सर-ए-शाम बुझाया मुझ को
कैसे भूलूंगा वो ही वस्ल के लम्हे
याद आता रहा ज़ुल्फ़ो का ही साया मुझ को
हसीनो ने हसीं बनकर गुनाह कर दिया,औरो को ठीक हमको भी बर्बाद कर दिया ,
इस बर्बादी की हमने ग़ज़ल बना दी ,औरो ने तो ठीक उन्होने भी वाह वाह कर दिया
मोहब्बत और आशिकी मे हैं मजबूरियाँ हज़ार,...
मोहब्बत तो हो जैसे कोई मजबूरी का बाज़ार,
मोहब्बत की चाह वाले मजबूरी ख़रीदा करते हैं
अपने ही अमन चैन से दूरी ख़रीदा करते हैं
अचानक मोहब्बत कर बैठे हूँ,...
क्या पता था अंधेरो मे कही खो जाएँगे...
भुला बैठे थे अपनो को ही हम
क्या पता था आख़िर लौट कर उन के पास ही आएँगे...
भले ही टूटे मेरा दिल,तुमसे प्यार आज भी है ...
तेरे लिए मेरे दिल में, वो बहार आज भी है
जिस राह चल दिए तुम मेरा साथ छोड़ कर,
उसी राह में तेरे आशिक़ की मज़ार आज भी है
हर ख़ुशी तेरी तरफ़ मोड़ दूं ...
ख़ुशिओ के दरवाज़े तेरे लिए खोल दूं
इतना काफ़ी है या 2 - 4 झूठ और बोल दूँ
Sunday, May 27, 2007
हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया
अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया ...
हमें तो यही था गुरूर गम-ए-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...
Thursday, May 24, 2007
तेरी आँखें अब होगी ना कभी नम
तू जो देख ले तो भुला दे में सारे ग़म
तू जो चाहे जो बदलेगा मौसम
यह जो पल हैं इन्हे ख़ुशियो से भर लो तुम
वो बितें दिन उन्हे याद फिर से कर लो तुम
तू जो चाहे जो बदले गा मौसम
ए दिल तो रोना नही
यह ख्वाब अधूरे नही
यह अरमान सारे तेरे
होंगे पूरे कभी
इक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालाला
इक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालाला
रहे ना कमी कोई...
इन हसीनो के उपर हर दाव खेल डालो,
***********************************
लिखा जाए एक फासना हमारे दोस्ताने का...
गुनगुनाओ एक मीठा नगमा इस दिल दीवाने का,
***********************************
करो कुछ ऐसा जिसमे मिलावाट हो बैमानी की...
और बुढ़ापे मैं कहो ये कहानी है हमारी जवानी की
दीवाना उसने कर दिया ...
हम कर ना सके कुछ भी लगातार देख कर
**************************************
ईद की ख़ुशियाँ आपको मुबारिक़ हों लेकिन
आपने चाँद नहीं आईना देखा होगा
**************************************
शायर तो हम है नहीं,
.....मगर शायरी यूही कर लेते है
जीना तो था नहीं,
.....मगर यूही ज़िंदगी को जी लेते हैं !!
Monday, May 14, 2007
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी
दिहल केवरिया पवनवा खोलावे बरबस बेदर्दी के याद ले आवे,
रोय भरे सोरहो सिंगार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।
छिटके चंदनिया अऽगीनिया लगावे सुतलस नेहिया इऽ बैरिन जगावे,
भावे ना अङ्गना दुआर हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।
पिहके पपिहरा पनघट किनारे अपनी मोरनिया का मोरवा दुलारे,
सम्हरे न गगरी हमार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।
सगरो फुलवरिया के फुलवा फुलाईल बन मतवारे भवरवा लोभाऽईल,
सहलो ना जाला बहार हे सजनी डासर सेजरिया जहर भऽईल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।
सरसो से खेतवा पियराइल बिरहन कोयलिया के बिरहा उमड़ाइल,
नीर झरे साँझ भीनसार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।
डोले बसन्ती बयार
गेहुँआ मण्टरिया से लहरल सिवनवा, होखे निहाल भइया सगर किसनवा
धरती के बाढ़ल श्रृंगार मगन मन होला हमार।।
बिहँसेला फुलवा महकेला क्यारी, ताक झाँक भँवरा लगावे फुलवारी
मौसम में आइल बहार मगन मन होला हमार।।
आईल कोयलिया अमवाँ के डरिया, पीयर चुनरिया पहिरे सवरियाँ
सोहेला पनघट किनार मगन मन होला हमार।।
।।फगुनवा रास ना आवे.............।।
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।
ननदी सतावे देवरा सतावे,
रही रही के जुल्मी के याद सतावे।
सासुजी देहली आशीष फगुनवा रास ना आवे।।
सखिया ना भावे नैहर ना भावे,
गोतीया के बोली जइसे आरी चलावे।
नींदियो ना आवे विशेष फगुनवा रास ना आवे।।
बैरी जियरवा कइसो ना माने,
रहि रहि नैना से लोरऽवा चुआवे
काहे नेहिया लगवनी प्राणेश फगुनवा रास ना आवे।।
पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।
बबुआ जमाना बडा. खराब बा
रहि-रहि के गोडवा रखिहऽ जमाना बडा. खराब बा
केहू पे भरोसा कईसे करबऽ जमाना बडा.खराब बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।
दिल्ली, मुंबई, दुबई सगरो ठगन क जमाना बा
पईसा, रुपिया तऽ खाली ऎगो बहाना बा
खून-पसीना चूसे क तऽ ऍगरिमन्ट बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।
नऊकरी- शिक्षा के नाव पे शोषण क बोलबाला बा
डोनेशन अऊर अंडरटेबल ईनकम क बोली बा
का करबऽ बबुआ जमाना बडा. खराब बा
बबुआ जमाना बडा. खराब बा ।।
।। जानवरन के मीटिंग ।।
घर लुटईला के बाद हमनी के करम भी इंसानन में बटाईल बा।
सबकर दुखड़ा सुन के राजा शेर के आँख में पानी भर आईल बा,
कइल जाई जाँच होखी हक खातिर महासंग्राम के बिगुल बजाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।
सबका सहमति से एगो संविधान पर अंतिम मुहर लगाईल बा,
सबसे पहिला हमार दुखड़ा के राग ढ़ेचुँ ढ़ेचुँ में गवाईल बा।
बाल मजदूरी अऊर श्रमिक उत्पीड़न में हमार हक दबाईल बा,
ई सुनते ही घोड़ा खच्चर ऊँट के राग भी एहि में समाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।
लोमड़ी मौसी के हाल तऽ अऊरो बदतर बा के ओरहना आईल बा,
दुसरा के माल पर आपन पेट भरे कऽ हक नेतवन में बटाईल बा।
नेताजी के चर्चा सुनते ही गिरगिटिया लोगन के रंग भी बदलाईल बा,
उनकर रंग बदले कऽ एस्क्लुसिव अधिकार भी नेता लोग चुराईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।
भाई से भाई लड़त देख कुकुरन के जात भी शरम से पनियाईल बा,
पतनशील समाज में इंसान के दरिंन्दगी से जानवर भी शरमाईल बा।
जहर उगीले के सर्प राज के महारथ पर भी पूरा पानी फेराईल बा,
नारी के कमसिन जीवन में नारी के जरिये ही जहर घोलाईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।
इहे हाल रही तऽ हमार का होखी के नारा से पूरा हाल थर्राईल बा,
सबसे बुरा हाल के रोना त़ऽ भईया खुद राजा शेर से ही रोआईल बा।
बड़ बड़ हथियार से लैस चूहा जइसन आदमी के रक्षक शेर कहाईल बा,
राजा शेर के दुखड़ा सुन सब जानवरन के आँख में पानी भर आईल बा।।
जानवरन के मीटिंग में.................।।
आपन इंतजाम .......
तहरा साथे वितावल हम घडी याद कइनी ह ...
चेहरा के काल्ह मुस्कराये खातिर औरी...
मन के पूरान दिन याद रहे के इंतजाम कइनी ह...
आज फेर से पूरान बतियन में हेरा गईनी ह ..
आज फेर से पूरान याद में डूब गईनी ह .......
हमरा मालूम बा कि काल्हो भी इ बतिया
हमार सब संगतिया, हमरा जरूर याद आई
आज फेरू हम मन्दिर गईनी ह ........
पूजा कईनी ह, औरी परसादी भी चढौनी ह......
आज के येह घनघोर कलयुग में भी ......
भगवान के कृपा हमरा पर बनल रही
आजकल गर्मी के आनन्द उठावत बानी
अमवा के बगइचा में पसीना सुखावत बानी
विधना के लेखा ह कि समय बदलबे करी ....
बरखा के सीजन भी समय पर अइबे करी ......
हम हमेशा से मन लगा के काम करीले ......
तय समय से पहिले पूरा भी करीले .......
हमार इंतजाम पूरा बा काल्ही खातिर भी
चाहे देही में ताकत रही भा ना रही .............
आज फिर से हम सूते जातानी .........
आज कौनो निमन सपना देखब ...
अगली पीढी के सपना सौपेके बा .......
काहे से कि...काल्ह ओके पूरा करेके बा ......
दू घूँटो पनिओ नाहि मिलल
केहू दिलदार नईखे मिलल,जे कुअवा क डगर देखावे।
कहे के त? सब आपन बाड. ई बेदरदी दुनिया से
का उम्मीद कईल जाईल।
दू घूँटो.................
खटिया पड. पडल बानी, मेहरारू अऊर लईका काहे के पूछे
पनिओ लागल जईसे समुंदर क मथाई से निकलल अमरित हो गईल।
दू घूँटो....................
आज के जुग के पनिओ मिलल मुक्कदर हो गईल
बिसलेरी क पनिओ कीनब, गरीबन के सोना हो गईल।
दू घूँटो...................................
Wednesday, May 09, 2007
आराम करो
एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा है माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।
आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ -- है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।
मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ -- सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।
अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।
मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।
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